झरोखा - लेखनी प्रतियोगिता -05-Mar-2022
अँखियों के झरोखे से तुम
झाँककर जब उतरे दिल में
रूह में मच उठी थी हलचल
दिल में बजी प्रेम की सरगम।
शिकवा न थी कोई तुझसे
तूने जमीं पर जन्नत दिखाया
मीरा बनकर मैं समाई तुझमें
प्यार से तू मुझमें था समाया।
उड़ने लगी थी मैं आसमां में
था खूबसूरत चाँद नजर आया
करनी थी तुझसे दिल की बात
पर जाने क्यों तू ना नजर आया।
नैनों के झरोखे में तेरी तलाश है
तेरे प्यार की बाकी अब आस है
जल बिन जैसे तड़पती है मछली
बस मेरा भी कुछ ऐसा ही हाल है।
प्रियतम हृदय के झरोखे को
बंद कर कहाँ चला गया है तू
कहीं किसी और की जुल्फों को
आशियाना तो नहीं बनाया तूने।
नाराज हो, रुठे हो अगर मुझसे
गुस्सा और नखरे मुझे दिखाओ
पर मन के झरोखे में अपने प्रिय
करुण पुकार तो सुनते जाओ।
यादों के झरोखे के ख्वाबों को
बाहों के आगोश में सच होने दो
तन्हाई में मिलन की यादों को
अपने पहलू में पुनर्जन्म दे दो।
तेरा कोमल स्पर्श है मुझे सताता
अहसास पुराने झरोखे से झांकता
घुटन, आगजनी से मुक्ति दिलाकर
अब तो मेरी रूह को सुकून दे दो।
जीवन में कैसी ये दुविधा आई
जब तेरी मौत ने मुझे दी जुदाई
अतीत के झरोखों ने जीवन में
विरह की विषम अनल जलाई।
बीता वक्त मानो सदियाँ गुजर गई
नैनों से नीर की नदियां बरस गई
अब ज़िंदगी बन गई थी दुखदाई
मौत से मेरी मिटेगी अब रुसवाई।
डॉ. अर्पिता अग्रवाल
Punam verma
06-Mar-2022 11:05 AM
Very nice
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Abhinav ji
06-Mar-2022 09:16 AM
Nice
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Swati chourasia
05-Mar-2022 05:48 PM
बहुत खूब 👌
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